दिल्ली में विकास की राजनीति का चेहरा कही जाने वालीं कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित इस दुनिया में नहीं रहीं। शालीन व्यवहार और सख्त फैसले ने उन्हें राजनीति के शिखर पर पहुंचाया। सख्त फैसले लेने वाली दीक्षित के राजनीतिक विरोधी थे, लेकिन दुश्मन कोई नहीं। शायद यही वजह थी कि लोकसभा चुनाव में उनके मुकाबले लड़ने वाले मनोज तिवारी जीत के बाद उनसे आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। यही नहीं उन्हें दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने वाले अरविंद केजरीवाल से भी उनके निजी जीवन में अच्छे संबंध थे।
राहुल गांधी के शब्दों में वह कांग्रेस की बेटी थीं। एक ऐसी बेटी जो अपनी बात पर जिद की हद तक टिके रहने, आम लोगों के बीच हर समय बने रहने के लिए लोकप्रिय थीं। उनका व्यवहार और आम लोगों से जुड़ाव उन्हें कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी के नेताओं की फेरहिस्त में सबसे अलग बनाता था। जीवन और राजनीति में प्रगतिशील, उदार और लोकतांत्रिक मूल्यों से भरपूर शीला दीक्षित बेहद अलग नेता रहीं
दूरदर्शी शीला दीक्षित की सांगठनिक क्षमताएं और कुशलताएं भी सबसे अलग थीं। यही वजह थीं कि ढलती उम्र में भी वे दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर काबिज थीं। आधुनिक दिल्ली उसकी बानगी भी है।
* दिल्ली के विकास में बड़ा हाथ
शीला दीक्षित के मुख्यमंत्रित्व काल में देश की राजधानी दिल्ली का रूप बदल गया। उन्हीं के कार्यकाल में दिल्ली को उसकी विश्वस्तरीय मेट्रो रेल परियोजना को रफ्तार मिली। उनके कार्यकाल में ही दिल्ली में दर्जनों फ्लाइओवर बने।परिवहन व्यवस्था सुधरी, डीजल बसों को बंद कर सीएनजी बसें लाईं। फिर तिपहिया स्कूटरों को भी सीएनजी में बदला। हरियाली, सेहत, शिक्षा पर भी जमकर काम किया। उनके कार्यकाल में ही दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स भी आयोजित हुए थे।
कांग्रेस नेतृत्व की करीबी
विकास की भविष्योन्मुखी सोच, नेहरू-गांधी विचारधारा की समर्थक और उससे आगे आम लोगों के दिलों पर राज करने वाली शीला दीक्षित का राजनीतिक करियर एक लंबा अध्याय था। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित पर भरोसा जताते हुए 1998 में उन्हें दिल्ली की गद्दी संभालने की जिम्मेदारी दी। शीला राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बेहद करीब मानी जाती थीं।
* कांग्रेस को बुलंदी पर पहुंचाया
शीला दीक्षित ने दिल्ली में कांग्रेस की कमान ऐसे समय में संभाली थी, जब प्रदेश में पार्टी संघर्ष कर रही थी। दिल्ली राज्य की सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी काबिज थी। भाजपा के शासनकाल में दिल्ली के तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले गए। ऐसे समय में दिल्ली की कठिन चुनौती स्वीकार की। शीला के नेतृत्व में कांग्रेस विपक्षी भाजपा को चुनावी दंगल में पटखनी देकर सत्ता पर काबिज हुई।
* 15 वर्ष तक जमाए रखे पांव
दीक्षित ने 1998 में जब दिल्ली की सत्ता संभाली थी, तब सरकार और कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां थीं। सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल और सख्त फैसले के साथ दिल्ली की विकास यात्रा को रफ्तार दी। जिसका नतीजा यह रहा कि शीला ने दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक पैर जमाए रखा।
* दोबारा राजनीति में हुई थीं सक्रिय
शीला दीक्षित का कांग्रेस में क्या स्थान था इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली में कांग्रेस की हालत बेहतर करने के लिए इन्हें दोबारा से सक्रिय राजीनीति में उतारा गया था। फिलहाल उनके पास कांग्रेस के दिल्ली अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी थी।
यूपी की जिम्मेदारी
कांग्रेस नेतृत्व को शीला दीक्षित की याद 2017 के यूपी चुनाव में आई। उन्हें पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री चेहरा बनाया और नारा दिया- '27 साल यूपी बेहाल'। हालांकि कांग्रेस को इसका कोई फायदा नहीं हुआ और फिर से उन्हें दिल्ली ही भेजा गया। लोकसभा चुनाव 2019 में वह उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव भी लड़ीं थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
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