मोहनापुर से परशुराम चौधरी
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मंगलवार को ललाइन पैसिया में ओबा माता के स्थान पर कथा वाचक पं संतोष जी महराजी ने पांचवे दिन राधा कृष्ण की झाकी निकाल कथा को आगे बढाते हुए कहा कि द्वारका रहते हुए भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का नाम चारों ओर फैल गया। बड़े-बड़े नृपति और सत्ताधिकारी भी उनके सामने मस्तक झुकाने लगे। उनके गुणों का गान करने लगे। बलराम के बल-वैभव और उनकी ख्याति पर मुग्ध होकर रैवत नामक राजा ने अपनी पुत्री रेवती का विवाह उनके साथ कर दिया। बलराम अवस्था में श्रीकृष्ण से बड़े थे। अतः नियमानुसार सर्वप्रथम उन्हीं का विवाह हुआ।उन दिनों विदर्भ देश में भीष्मक नामक एक परम तेजस्वी और सद्गुणी नृपति राज्य करते थे। कुण्डिनपुर उनकी राजधानी थी। उनके पांच पुत्र और एक पुत्री थी। उसमें लक्ष्मी के समान ही दिव्य लक्षण थे। अतः लोग उसे 'लक्ष्मीस्वरूपा' कहा करते थे। रुक्मिणी जब विवाह योग्य हो गई तो भीष्मक को उसके विवाह की चिंता हुई। रुक्मिणी के पास जो लोग आते-जाते थे, वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। वे रुकमणी से कहा करते थे, श्रीकृष्ण अलौकिक पुरुष हैं। इस समय संपूर्ण विश्व में उनके सदृश अन्य कोई पुरुष नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुकमणी ने मन ही मन निश्चय किया कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी को भी पति रूप में वरण नहीं करेगी।इस दौरान सुधाकर मिश्र रमेश मद्धेशिया,कमलेश,शिवपूजन,बलराज यादव,सत्यनरायण सहित काफी लोग मौजूद रहे।
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