ललाइन पैसिया से श्रीनरायन गुप्ता
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विषय:- पर्यावरण
पेड़ों का संसार कहाँ है
प्रकृति का श्रृंगार कहाँ है
सूखे से है त्रस्त वसुन्धरा
पानी का भण्डार कहाँ है
पेड़ों का संसार कहाँ है।
शरद की तो चाँदनी है पर
वह झल-मल नीहार कहाँ है
उजड़ रहे हैं वन-उपवन सब
फूलों का अम्बार कहाँ है
पेड़ों का संसार कहाँ है।
वह सुन्दर सा सर कहाँ है
कमल के ऊपर भ्रमर कहाँ है
जीवन का आधार कहाँ है
वह अपनापन प्यार कहाँ है
पेड़ों का संसार कहाँ है।
क्षण-क्षण चित्त चुरा ले जो
वह चितवन वह सार कहाँ है
यूँ तो तार अनेकों हैं पर
वीणा का झंकार कहाँ है
पेड़ों का संसार कहाँ है।
रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' (सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)
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