ललाइन पैसिया से श्री नरायान गुप्ता
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याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास
जब..पत्र लिख रही होती हो मेरे नाम
या जब टूट जाती हैं चूड़ियाँ यूँ ही।
याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास
जब.... होता है समय
धानी रंग के परदे को उठने का
या जब घुटने के जख़्म में
उठता है दर्द यूँ ही।
याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास
जब...देखता हूँ
केले का पौधा आंगन में
या...जब अगरबत्ती के धुएँ में खिंच जाती है तस्वीर तेरी यूँ ही।
याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास
जब...ढूँढता हूँ उसी गली में
बीते हुए कल को
जब ध्वनित हो जाती है
पाठशाले की घण्टी।
याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास
जब देखता हूँ फूल कोई पीला सा
दृष्टिगत हो जाता है
पूजा का बर्तन यूँ ही
यज्ञशाला में सुनता हूँ
उच्चरित मंत्रों को।
याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास
जब.... होता हूँ बिल्कुल अकेला
जब..आती है आवाज कोयल की
बज उठती है घण्टी टेलीफोन की
आती है आवाज डाकिये की
छलक पड़ते हैं आँसू यूँ ही।
याद आती हो तुम मुझे
होता है तेरे प्यार का एहसास।
रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)
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